आईये सब साझा करें
ये अंबिकापुर है। मशहूर तो नहीं लेकिन पहचना इतनी सारी है कि इसे एक में नहीं तलाशा जा सकता। अंबिकापुर। वो शहर, जहां बच्चा होश संभालता है तो उसके हाथ में क्रिकेट का बैट होता है। वो शहर जहां के बच्चे ब्रेडमेन से लेकर धोनी तक के चर्चे करते नज़र आते हैं। वो शहर जहां युवा आज भी छिपकर ही सिगरेट पीने की हिम्मत जुटा पाता है। वो शहर जहां शाम ढलते ही माहौल में महुए की खुशबू फैल जाती है। वो शहर जहां के लड़के लड़कियों की चर्चा भी वैसे ही करते हैं जैसे भारतीय संविधान की। यहां के बुद्धिजीवी शराब की पार्टियों से नहीं अपनी समझ व्यवहार और ज्ञान से पहचाने जाते हैं। वो शहर जहां गणेश पूजा भी उतनी ही धूमधाम से मनाई जाती है जितनी धूमधाम से दुर्गापूजा. वो शहर जहां की ज़ुबान सरगुजिहा इतनी मीठी है कि कोई बोले तो लगता है वो गाना गा रहा है.‘ए बुधन कर दाईईईईई.
इस शहर को मैं हमेशा मिस करता हूं. दस साल के दौरान जब यहां से से बाहर रहा इसकी कमी खलती रही। जब भी दिल्ली में बबूल के पेड़ों के जंगल देखे तो याद आया सरई की दातून। तन्हाइयों में इस शहर से जुड़ा यादों का झोंका आता है और चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता है। वो रात को रेस ट्रीप का खेल. गुंजन की शायरी, उसका उर्दु के शब्दों का ग़लत मतलब। बाचा की मुस्कुराहट, उसकी हीरोगिरी। दुर्गा दादा की दारू की मेहमाननवाज़ी। देवराज की कॉमिक्स की दुकान और भविष्य को लेकर उसकी योजनाएं। बबलू भैया का हमेशा स्मार्ट दिखने की कोशिश। भोंदू का देसी स्टाइल। हुंजन अंकल का प्यार। गक्को की बैटिंग। सरस्वती शिशु मंदिर की दो घंटे लंबी प्रार्थना। वहां की संस्कृत। शारदा दीदीजी का हाथ पलटवा कर छड़ी से मारना। आचार्य जी का भाषण। भैय्या जी का बच्चों का हमेशा ख्याल रखने की आदत। राजेश पंडित का गप्प। दीनानाथ आचार्य जी का प्यार। दीपक के मोहिनी के किस्से। एग्जाम की तैयारियां करते वक्त रात को राहुल का ड्रामा। विनोद की सरगुजिहा। सुधन का बाबू साहब बनना। रिंकू की शैतानी और उसका मेरे हाथों पिटना। टिंकू का मुंह फूलाना। रंजू का छोटे होने के बाद भी कैरम में जीत जाना। उसके पास मेरे से ज्यादा बाटी होना। मिस्त्री के बहाने, छोटू के ऐतिहासक किस्से। लक्ष्मी का भारतीय राजनीति का सटीक विश्लेषण। सब बहुत मिस करता हूं. कोशिश है उन्हीं यादों को फिर से सबके साथ साझा करने की। उस शहर को याद करने के लिए इस ब्लॉग का सहारा ले रहा हूं. उम्मीद है आप भी अपनी यादें बाटेंगे तो ये सिलसिला आगे बढ़ेगा।
इस शहर को मैं हमेशा मिस करता हूं. दस साल के दौरान जब यहां से से बाहर रहा इसकी कमी खलती रही। जब भी दिल्ली में बबूल के पेड़ों के जंगल देखे तो याद आया सरई की दातून। तन्हाइयों में इस शहर से जुड़ा यादों का झोंका आता है और चेहरे पर मुस्कुराहट ला देता है। वो रात को रेस ट्रीप का खेल. गुंजन की शायरी, उसका उर्दु के शब्दों का ग़लत मतलब। बाचा की मुस्कुराहट, उसकी हीरोगिरी। दुर्गा दादा की दारू की मेहमाननवाज़ी। देवराज की कॉमिक्स की दुकान और भविष्य को लेकर उसकी योजनाएं। बबलू भैया का हमेशा स्मार्ट दिखने की कोशिश। भोंदू का देसी स्टाइल। हुंजन अंकल का प्यार। गक्को की बैटिंग। सरस्वती शिशु मंदिर की दो घंटे लंबी प्रार्थना। वहां की संस्कृत। शारदा दीदीजी का हाथ पलटवा कर छड़ी से मारना। आचार्य जी का भाषण। भैय्या जी का बच्चों का हमेशा ख्याल रखने की आदत। राजेश पंडित का गप्प। दीनानाथ आचार्य जी का प्यार। दीपक के मोहिनी के किस्से। एग्जाम की तैयारियां करते वक्त रात को राहुल का ड्रामा। विनोद की सरगुजिहा। सुधन का बाबू साहब बनना। रिंकू की शैतानी और उसका मेरे हाथों पिटना। टिंकू का मुंह फूलाना। रंजू का छोटे होने के बाद भी कैरम में जीत जाना। उसके पास मेरे से ज्यादा बाटी होना। मिस्त्री के बहाने, छोटू के ऐतिहासक किस्से। लक्ष्मी का भारतीय राजनीति का सटीक विश्लेषण। सब बहुत मिस करता हूं. कोशिश है उन्हीं यादों को फिर से सबके साथ साझा करने की। उस शहर को याद करने के लिए इस ब्लॉग का सहारा ले रहा हूं. उम्मीद है आप भी अपनी यादें बाटेंगे तो ये सिलसिला आगे बढ़ेगा।